बीमारी फैलने के खतरे को देखते हुए अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन से चीन पर ट्रैवल बैन की मांग की है। पांच सांसदों का कहना है कि बीमारी पर ज्यादा जानकारी के लिए डब्लूएचओ का इंतजार नहीं करना चाहिए। लोगों और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए चीन आना-जाना तुरंत बंद करने की जरूरत है।
वाशिंगटन। चीन में फैली फेफड़ों से जुड़ी रहस्यमयी बीमारी अब अमेरिका में भी फैलने लगी है। इसके ज्यादातर पीडि़त 3 से 8 साल के बच्चे बताए जा रहे हैं। बीमारी से उनके फेफड़े सफेद पड़ रहे हैं। अमेरिका के मैसाचुसेट्स और ओहायो में इस बीमारी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वहां इस बैक्टीरियल निमोनिया को व्हाइट लंग सिंड्रोम कहा जा रहा है।
ओहायो की वॉरेन काउंटी में इस बीमारी के 142 मामले सामने आए हैं। मैसाचुसेट्स के डॉक्टरों का कहना है कि व्हाइट लंग सिंड्रोम चीन की रहस्यमयी बीमारी की तरह ही बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शन का मिक्सचर है।
बीमारी फैलने के खतरे को देखते हुए अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों ने राष्ट्रपति जो बाइडेन से चीन पर ट्रैवल बैन की मांग की है। पांच सांसदों का कहना है कि बीमारी पर ज्यादा जानकारी के लिए डब्लूएचओ का इंतजार नहीं करना चाहिए। लोगों और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए चीन आना-जाना तुरंत बंद करने की जरूरत है।
व्हाइट लंग सिंड्रोम से पीडि़त बच्चों के चेस्ट के एक्स रे में सफेद रंग के पैच दिखाई दे रहे हैं। ऐसा ज्यादातर दो तरह की बीमारियों में होता है। पल्मोनरी एलविओलर माइक्रोलिथाइसिस यानी पीएएम और सिलकोसिस।
पीएमएम में फेफड़ों में कैल्शियम जमना शुरू हो जाता है। जिससे खांसी और सीने में दर्द के साथ सांस लेने में दिक्कत होती है। जबकि सिलकोसिस बीमारी डस्ट, स्टोन और सिलिका जैसे पदार्थों के सांस के साथ अंदर जाने की वजह से होती है। इसमें भी लंग्स में सफेद धब्बे हो जाते हैं।
सीबीसी न्यूज के मुताबिक एक्सपर्ट का मानना है कि अमेरिका में फैल रहा व्हाइट लंग सिंड्रोम चीन की बीमारी से अलग है। अमेरिका में लोगों को कफ के साथ, तेज बुखार और शरीर में दर्द महसूस हो रहा। जबकि चीन की बीमारी में कफ नहीं बन रहा, पीडि़तों में खांसी, गले में दर्द, फेफड़ों में सूजन और सांस की नली में सूजन जैसे लक्षण दिख रहे हैं। हालांकि दोनों में कुछ समानताएं भी हैं। जैसे दोनों बीमारियां बैक्टीरिया और वायरस का मिक्सचर बताई जा रही हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि दोनों बीमारियां इम्यूनिटी की कमी की वजह से बच्चों को चपेट में ले रही हैं। न सिर्फ चीन बल्कि दुनियाभर में लॉकडाउन के दौरान बच्चे घरों में रहे। इसकी वजह से उनके शरीर में पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता नहीं बन पाई। अब लॉकडाउन हटने के बाद जब वो बाहर निकल रहे हैं तो बीमार पड़ रहे हैं।